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बुध्दिस्ट सर्किट योजना ठंडे बस्ते मे |

रायसेन |( सुलेखा सिंगोरिया) रायसेन जिल पुरातत्व की द्रष्टि से एक अलग पहचान रखता है।  यहाँ विश्व प्रशिध्द सांची का स्तूप है, भीम बैठका की गुफाये है, जो विश्व मे अपना अलग स्थान रखती है| इसके अलावा रॉक शेल्टर और शैल चित्र तो अधिक संख्या मे है जितने तो पूरे विश्व मे नहीं है, लेकिन इन रॉक शेल्टर और शैल चित्र के संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए न ही कोई विशेष प्रयास नहीं हुये है| जिले मे भीम बैठना की गुफाओ के अलावा रामछज्जा, पेंगगंवा, खरबई, सतकुंडा, मकोडिया, उरदेनिया, पुतली, सीतातलई, खनपुरा, सहित 60 से अधिक ऐसे स्थान है,जहा पर बड़ी मात्र मे रॉक शेल्टर और रॉक पेंटिंग है| पुरातत्वविद राजीब चौबे का कहना हि की यही इन रॉक शेल्टर और शैल चित्रो को संरक्षित करने के साथ ही वहाँ तक पंहुच मार्ग की सुविधा विकसित कर दी जाए तो विश्व भर के पर्यटक आने लगेंगे| जिला पर्यटन के हब के रूप मे विकसित हो सकता है|

 

 

 

 

रायसेन जिले मे चीन के बाद विश्व की दूसरी लंबी दीवार ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया मौजूद है। जो नेशनल हाईवे क्रमांक 12 देवरी तहसील मे गोरखपुर से चैनपुर किले तक 80 किमी लंबी बनी हुये है| यह दीवार भी सालो पुरानी है। लेकिन इस दीवार को न तो संरक्षित किया गया और न ही इस दीवार को प्रसिद्धि दिलाने की दिशा मे किसी प्रकार के प्रयास हुये।

करोड़ो की योजना बनी मगर अमल मे नहीं आई  

सांची के अलावा जिले मे छह से भी ज़्यादा स्थान पर ऐसे ही स्तूप बने हुई है जिनमे सतधारा,मूरेल, पिपरिया,खरबई के अल्वा अन्य अथान है इसको आपस मे जोड कर बुद्धिस्ट सर्किट बनाने की योजना भी अब तक मूर्तरूप नहीं ले पाई है| जिस कारण पर्यटन इन बुद्धिस्ट सर्किट से अब लोगो से दूर बने हुये है|

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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