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सुल्तानिया अस्पताल के डाक्टरों का रवैया मरीजो के साथ असंवेदनशील

 

भोपाल।(सुलेखा सिंगोरिया) सुल्तानिया अस्पताल जो कि एक सरकारी अस्पताल है। सुल्तानिया अस्पताल मे लोअर और मिडिल क्लास की ज्यादा महिलाए प्रसव और इलाज के लिए यहाँ बड़ी उम्मीद लेकर आती है। इस सरकारी अस्पताल मे रोज 30 से 35 महिलाओ की निशुल्क डिलीवरी होती है। यहाँ कैंसर से लेकर महिलाओ से संबन्धित सभी बीमारियो का इलाज होता है। निजी अस्पतालो मे लाखो रूपय मे होने वाला इंफर्टिलिटी ट्रीटमेंट भी यहाँ निशुल्क उपलब्ध है। लेकिन अव्यवस्था, स्टॉफ व बजट की कमी और कुछ डॉक्टर एव कर्मचारियो असंवेदनशील व्यवहार से इस अस्पताल की छवि खराब हो गई है। इसके चलते यहाँ आने वाली कई महिलाओ को मानसिक और शारीरिक पीड़ा से भी गुजरना पड़ता हैं। अस्पताल मे इलाज के लिए आई कुछ महिलाओ ने अपनी परेशानी पूछने पर बताया कि हम दूर से इस उम्मीद मे आते है कि यहाँ आ कर हमारा दर्द कम होगा लेकिन यहाँ कि व्यवस्था ऐसी है कि यहाँ आकार हमारा दर्द और बढ़ा देती हैं।

कल बिना इलाज के लौटी, दूसरे दिन ढाई घंटे बाद भी नहीं आया नंबर........

अस्पताल मे आई एक महिला से पूछा तो उसने बताया कि मेरा नाम ज्योति है। मैं पुराने शहर मे रहती हूँ। छह माह से गर्भवती हूँ। मैं कल रूटीन चैकअप के लिए आई थी। बहुत भीड़ थी। घंटो इंतजार करने के  बाद मेरी तबीयत बिगड़ती गई और फिर भी जब मेरा नंबर नहीं आया तो मुझे वापिस घर जाना पड़ा..... मैं दूसरे दिन सोमवार को सुबह 9 बजे ही अस्पताल आ गई थी। लेकिन 12 बजे तक मेरा नंबर नहीं आया। फिर से घंटो इंतज़ार करना पड़ा। वही दूसरी महिला ने बताया कि 16 अप्रैल को ऑपरेशन से मेरी एक बेटी हुई है। कोई डीन मैडम ने ऑपरेशन किया था। 19 अप्रैल को डॉक्टर ने मुझे डिस्चार्ज कर दिया। मैंने बताया मेरे टांको मे अभी भी दर्द है। मैं अभी घर जाने कि स्थिति मे नहीं हूँ। लेकिन किसी ने बात नहीं सुनी। घर पहुँचने के बाद मेरा दर्द और बढ़ गया। टांको मे भी बार-बार पानी भर जाता था। 23 अप्रैल को जब मैं टांके कटवाने अस्पताल आई तो डॉक्टर को मैंने अपनी तकलीफ के बारे मे बताया, तो डॉ ने कहा – कल आना, घर जाकर रात मे फिरसे दर्द हुआ रातभर सो नहीं पाई। 24 अप्रैल को फिर दिखाया तो डॉ ने दवा दे दी। तो कुछ इस तरह से किया अस्पताल मे आए मरीजो ने  अपनी परेशानियों का हाले बया।

सुल्तानिया अस्पताल, अधीक्षक डॉ अजय शर्मा - यह रैफरल अस्पताल है, हम किसी को भर्ती करने से माना तो नहीं कर सकते है। ऐसे मे कभी-कभी देरी भी हो जाती है। अस्पताल से सारे वार्ड पहले से ही फुल है। बरामदे को भी मदर वार्ड बनाता हुआ है। अब एन॰एच॰एम॰ कि मदद से एक आईसीयू वार्ड बनाया जा रहा है। उम्मीद है उससे महिला मरीजो कि परेशानी दूर हो सकती हैं। 

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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