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इंसानियत की मिसाल हैं 103 साल की तैय्यबा बी।


भोपाल। 103 साल की तैय्यबा बी बेटियों की फिक्रमंद शहर एक ऐसी शख्स हैं जो इनकी तालीम और इनके सपनो को पूरी शिद्दत के साथ जी रही हैं। तैय्यबा बी का एक ही सपना हैं कि बेटियों खूब पढ़ें और खूब बढ़ें ताकि इनका आत्मसम्मान हमेशा बरकरार रहे। 

तैय्यबा बी के इस सपने की शुरुआत 68 साल पहले 1951 मे मदरसा हयातुल उलूम निस्वाह से हुआ, जिसका शुभारंभ शाह मोहम्मद याकूब मुजद्ददी ने किया। पहले यह मदरसा गिन्नौरी फिर कोतवाली के नजदीक रहा। बाद में मोती मस्जिद परिसर में कायम हो गया। शुरुआती दौर में इस मदरसे को संचालित करने के लिए उन्हें अपने जेवर तक बेचना पड़े। लेकिन मदरसे को कभी आर्थिक संकटों से घिरने नहीं दिया। इस मदरसे में हर साल औसतन 1000 बेटियां मुफ्त में तालमी हासिल करती हैं। दीन के साथ यहां अंग्रेजी समेत अन्य विषयों की भी शिक्षा दी जाती है।  तैय्यबा बी अरबी, फारसी और उर्दू की जानकार हैं। यूनानी चिकित्सक भी हैं लेकिन इसे उन्होंने कभी अपना पेशा नहीं बनाया। हालांकि इन दिनों वे अस्वस्थ है।

तालीम हासिल कर चुकी कई लड़कियां यहाँ पढ़ाती हैं-  यहां बड़े-बड़े क्लास रूम, इंडोर गेम्स के लिए बड़ा आंगन और दो बड़े दालान हैं। यहां कक्षा पहली से लेकर 12 वीं तक की शिक्षा दी जाती हैं। मदरसे से तालीम हासिल कर चुकी कई लड़कियां स्वेच्छा से यहां बच्चियों को पढ़ाती है। सुबह 8 से दोपहर एक तक विभिन्न क्लासें लगती है। यहां की लड़कियां प्राइवेट स्टूडेंट के रूप में बोर्ड की परीक्षाएं भी देती है। निर्धन परिवार की लड़कियों की शादी का जिम्मा भी मदरसे की मुखिया तैय्यबा बी उठाती हैं। इसके लिए वे अपने अनुयायियों की मदद लेती है। वे रिश्ता तलाश कर कमजोर वर्ग की लड़कियों की शादी में मदद करते हैं। अब तक वे सैकड़ों लड़कियों की शादी बगैर किसी प्रचार के करा चुकी हैं।

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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