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साधना के दौरान आग मे झुलसी जैन साध्वी आर्यिका सुनयमति ने ली मरण समाधि।

सागर। धर्म और भक्ति की नई विशाल बनी आर्यिका सुनयमति माताजी, उनकी अटूट श्रद्धा और देखकर लोगो के मन मे जागी ईश्वर के प्रति करुणा और भक्ति। छतरपुर जिले के नैनागिर तीर्थ में जैन साध्वी की धर्म से जुड़ी आर्यिका सुनयमति माताजी शुक्रवार रात साधना कर रही थीं। इसी दौरान आग मे उन्हे चपेट लिए, चूंकि उनकी साधना का समय पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उन्होने आग से बचने की भी कोशिश नहीं की। इससे वे करीब 90 प्रतिशत जल गई। जी हाँ, ईश्वर के प्रति अटूट निष्ठा और समर्पण का अनूठा मामला।

मुनिसेवा समिति के सदस्य मुकेश जैन ढाना ने बताया कि आर्यिका सुनयमति माताजी ने 16 अगस्त 1980 को आचार्यश्री विद्यासागर महाराज से मुक्तागिरी में ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। 6 जून 1997 को उन्हें आर्यिका दीक्षा रेवा तट नेमावर में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने दी थी।। शुरुआत में वे आर्यिका आलोकमति माताजी का संघ में थीं, बाद में स्वास्थ्य अनुकूल नहीं होने से वे व्हील चेयर पर चलने लगी थीं।

तय नियम के तहत वे शुक्रवार शाम साधना के लिए अपने कक्ष में चटाई लपेट कर बैठ गईं। वे 45 से 50 मिनट की साधना कर चुकी थीं, तभी एक श्राविका ने सिगड़ी में कुछ अंगारे कमरे के बाहर रख दिए ताकि साधना के बाद माताजी की सेवा कर सके।  तभी किसी जरूरी काम से वह सिगड़ी छोड़ कर वहां से चली गई। तभी तेज हवा से पर्दे ने आग पकड़ ली और साध्वी की चटाई भी जलने लगी। चूंकि उनकी साधना की अवधि बची हुई थी इसलिए वे वहां से नहीं हटीं। कुछ ही देर में आग उनके कपड़ो  से गले तक पहुंच गई। चंद मिनटों बाद जैसे ही उनकी साधना की अवधि पूरी हुई, उन्होंने चटाई को शरीर से अलग करने का प्रयास किया। इस दौरान उनकी खाल भी शरीर से अलग हो गई। तब तक वहां पहुंचे श्रावकों ने उन्हें संभाला और फौरन शहर के भाग्योदय अस्पताल लाया गया। उन्होंने समाधि लेने की इच्छा जताई और रविवार सुबह 5:30 बजे करीब 30 घंटे बाद उन्होंने समाधि ली।।

रविवार सुबह उनका डोला भाग्योदय के सामने की जमीन पर ले जाया गया। यहां मुक्तिधाम में विनयांजलि सभा में लोगो ने आर्यिका सुनयमति माताजी के जीवन पर आधारित कई दृष्टांत सुनाए।

 

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सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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