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बड़े तालाब मे सीवेज और गंदगी की सफाई के नाम पर निगम की कछुआ चाल।

भोपाल। राजधानी शहर को झीलो की सुंदरता के कारण सिटी ऑफ लेक कहा जाता हैं, तालाबो को साफ रखते ने लिए अमृत योजना के तहत नगर निगम को समय दिया गया था, कि बड़े तलब कि गदंगी और सीवेज को साफ किया जाये, लेकिन अगर तालाबो को देखे तो उसके गंदगी के अलावा कुछ नहीं दिखाई देगी, संत हिरदाराम नगर (बैरागढ़) इलाके में अब भी 8 कॉलोनियों के 12 पाइंट से तालाब के अंदर सीधे सीवेज वाटर मिल रहा है। तालाब किनारे अतिक्रमण और अवैध निर्माण कर आबादी लगातार बढ़ रही है, जिसका सीवेज और गंदगी सीधे तालाब में मिलती है। अमृत योजना द्वारा सीवेज और गंदगी मुक्त बनाने की मियाद अब सिर्फ चार माह शेष है। लेकिन जिस गति से नगर निगम और उसकी निर्माण एजेंसियां काम कर रही हैं, उसके मुताबिक मानसून से पहले यह काम पूरा होता नहीं दिख रहा है। शहर की 5 लाख आबादी रोजाना तालाब का पानी पीती है, इसी तालाब में रोजाना इसी आबादी का 20 एमएलडी सीवेज समा जाता है। तालाब किनारे अतिक्रमण और अवैध निर्माण कर आबादी लगातार बढ़ रही है, जिसका सीवेज और गंदगी सीधे तालाब में मिलती है, अवैध होने के कारण इनमें से तमाम इलाके निर्माणाधीन सीवेज नेटवर्क से बाहर हैं।

निगम पिछले एक साल से दावा करता आ रहा है कि मई 2020 तक बड़े तालाब को 100 फीसदी सीवेज मुक्त कर दिया जाएगा। इसके लिए वर्ष 2018 में तालाब में सीवेज रोकने के लिए अमृत योजना के तहत 135 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किए गए। इसमें शहर के तमाम हिस्सों को सीवेज नेटवर्क से जोड़ा जाना है। साथ ही 20 करोड़ रुपए की लागत से तालाब किनारे 16.5 एमएलडी क्षमता के 4 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और 3 सीवेज पंप हाउस बनाए जाने हैं। यह पंप हाउस सीरिन नाला, जमुनिया छीर और सूरज नगर में बन रहे हैं। फिलहाल काम बंद पड़ा है। यही हाल शिरीन, जमुनिया क्षीर, सूरजनगर, नीलबढ़ में बन रहे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का है। गलत साइट सेलेक्शन के कारण तीन प्लांट के काम अधर में लटक गए हैं।

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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