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भोपाल गैस पीड़ितों के लिए केंद्र सरकार ने 7844 करोड़ मुआवजे की मांग की थी, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की क्यूरेटिव याचिका खारिज, इसका असर 3.20 लाख गैस पीड़ितों पर |

नई दिल्ली\भोपाल : 1984 में 2-3 दिसंबर की रात को जब गैस रिसाव हुआ उस समय भोपाल की जनसंख्या करीब 9 लाख थी, जिसमें करीब 5.74 लाख लोग प्रभावित हुए थे, और मरने वालों की संख्या 3700 के करीब थी |  केंद्र सरकार ने गैस पीड़ितों के लिए यूनियन कार्बाइड से 7844 करोड़ का अतिरिक्त मुआवजा दिलाने की मांग की थी | मुआवज़ा सिर्फ 1.2 लाख लोगो के हिसाब से मांगा गया था | केंद्र सरकार ने कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर की थी, जो सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने रद्द कर दी | जिसका सीधा असर गैस पीड़ितों को इलाज में मिलने वाली मदद पर पड़ेगा | और गैस पीड़ितों के लिए बनाए गए अस्पतालों में भी अब उपकरणों और डॉक्टर्स की कमी को पूरा नहीं किया जा सकेगा | संविधान पीठ ने कहा कि केंद्र ने कोई बीमा पॉलिसी नहीं ली थी, यह बहुत बड़ी लापरवाही थी केंद्र की और से, इसके बाद भी केंद्र ने इस लापरवाही के लिए यूनियन कार्बाइड कंपनी की ज़िम्मेदारी तय करने की मांग की थी | केंद्र अपनी ही तीन गलतियों के कारण केस हार गया हैं पहली गलती केंद्र ने यह की, कि केंद्र सरकार करीब दो दशक के बाद कोर्ट आई व देरी का कोई कारण भी नहीं बता पाई | उसके बाद कम मुआवजे में समझौता किया फिर समझौते में धोखे जैसी बात कोर्ट में स्पष्ट नहीं कर पाई | केंद्र का तर्क था कि बाद में समस्याएं बढ़ गई, कोर्ट ने कहा – यह मुआवज़ा बढ़ाने का आधार नहीं हैं | इन गलतियों के कारण केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट मे गैस पीड़ितों के मुआवजे का केस हार गई | यदि केंद्र केस जीत जाता तो गैस पीड़ितों को गंभीर बीमारियों का इलाज खुद के पैसो  से नहीं कराना पड़ता | गैस दुष्प्रभाव के कारण सैकड़ों पीड़ित कैंसर, किडनी, लीवर, फेफड़े, आँख, मस्तिष्क आदि बीमारियों के शिकार हुए हैं | केंद्र के अधीन संचालित भोपाल मेमोरियल अस्पताल व राज्य सरकार के 6 गैस राहत अस्पतालों में सही उपचार न मिलने के कारण मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों की और भागना पड़ रहा हैं | 1989 में यूनियन कार्बाइड और भारत सरकार के बीच हुए समझौते के बाद 715 करोड़ रु. का मुआवज़ा दिया गया था |  जो एक लाख दो हज़ार गैस पीड़ितों के लिए मांगी गई राशि थी, लेकिन यह राशि 5 लाख 74 हज़ार प्रभावितों को बांटी गई जिसमें उन्हें सिर्फ 25-25 हज़ार रु. ही दिए गए थे | और मरने वालों को एक लाख रु. दिए गए थे | गैस पीड़ित संगठनों का कहना हैं कि केंद्र सरकार ने सही ढंग से पक्ष रखा होता तो आज फैसला गैस पीड़ितों के हक़ में ही होता | 

 

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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