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जिनका इकबाल बुलंद उन्हें एनजीटी ने जमीन दिखा दी |

सर्वशक्तिमान सत्ता की मिठास चखते हुए मुख्य सचिव,इकबाल सिंह बैस

भोपाल  : 23/08/2023 : ( सैफुद्दीन सैफी) अखिल भारतीय सेवाओं खासकर आयएएस, आईपीएस और आईएफएस के जिन अफसरों की पदस्थपना विभिन्न राज्यों में होती है,तो कार्यकाल के दौरान उनकी जवाबदेही राज्य सरकार के प्रति होती है | मलाईदार विभाग की चाहत में कुछ अफसर जवाबदेही की सीमा से आगे जाकर सत्तारूढ़ दल और उसके मुखिया के प्रति वफादार और निष्ठावान हो जाते हैं | यही वजह है कि, प्रदेश की कानून व्यवस्था के दो शीर्ष पदों सीएस तथा डीजीपी पर सरकार के चहेते और फरमाबरदार अफसरों को ही बिठाया जाता है | मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस इसी मनोवृत्ति का एक उदाहरण हैं | सीएम शिवराज सिंह चौहान के खासमखास होने के नाते सीएस का इकबाल बुलंद होता गया | और उन्हें तीसरी बार सेवा विस्तार दिया गया | लेकिन सरकार के चहेते सीएस की कार्यशैली नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी ) को पसंद नहीं आई और उसने सीएस को बड़ी फटकार लगाते हुए ऐसी टिप्पणी भी की जिसमें सरकार के कामकाज पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया | दरअसल, कलियासोत नदी के केचमेंट एरिया में हुए अवैध निर्माणों को हटाने के एनजीटी के पूर्व आदेश पर अमल नहीं करने के लिए इकबाल सिंह बैस से जवाब तलब किया गया था, लेकिन वे संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए और बगले झांकने लगे | गौरतलब है कि, अवैध निर्माणों के चलते कलियासोत नदी एक बड़े नाले में परिवर्तित हो गई है | इकबाल साहब इन अवैध निर्माणों को महज इसलिए नही हटा पाए क्योंकि, इनमें से अधिकांश ऐसे रसूखदारों के हैं जिनकी खुसपैठ पार्टी संगठन और सत्ता के गलियारों में है | सीधी सी बात है कि, जो नौकरशाह सत्तारूढ़ दल की कृपा से तीसरी बार सेवा विस्तार का लाभ ले रहा हो, उसमें इतनी हिम्मत नहीं होती कि, वह रसूखदारों के निर्माणों पर बुलडोजर चलवा दे | अब तो यह भी मांग उठने लगी है कि, सीएस को हटाया  जाए क्योंकि, चुनाव में उनसे निष्पक्षता की उम्मीद करना बेकार है | प्रशासनिक हल्कों में शायद यह इकलौता उदाहरण है कि, जब किसी सीएस को ट्रिब्यूनल में इस कदर जलील होना पड़ा | अगर उनमें ज़रा भी गैरत होती तो उन्हें एनजीटी से बाहर आते ही इस्तीफा दे देना चाहिए था |

“ज़लालत के हिंडोले पर खुद्दार नहीं झूला करते” |    

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प्रधान संपादक समाचार संपादक
सैफु द्घीन सैफी डॉ मीनू पाण्ड्य
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